Coup in Pakistan : फिर पलटेगा पाकिस्तान में तख्ता

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पाकिस्तान की सियासत में एक बार फिर तख्तापलट (Coup in Pakistan) की चर्चा जोरों पर है। खबरें आ रही हैं कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर (Asim Munir) सत्ता पर कब्जा करने की तैयारी में हैं। 

इस बार यह बदलाव बंदूक के जोर पर नहीं, बल्कि संविधान और सत्ता के गलियारों में चल रही एक 'सॉफ्ट क्रांति' के जरिए होने की आशंका है। राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को हटाने, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को किनारे करने और बिलावल भुट्टो को सत्ता में लाने की सुगबुगाहट खुलकर सामने आ रही है। कहा जा रहा है कि मुनीर पाकिस्तान में राष्ट्रपति प्रणाली (Presidential System) लागू करना चाहते हैं।

सबसे पहले नज़र डालते हैं उस घटनाक्रम पर जिसने पूरे देश को चौंका दिया। मई 2025 में जनरल मुनीर को पाकिस्तान (Pakistan Army Chief) के इतिहास में केवल दूसरी बार फील्ड मार्शल का दर्जा दिया गया। इससे पहले 1959 में जनरल अय्यूब खान ने सत्ता हथियाने के बाद खुद को यह पद दिया था। 

आसिम मुनीर की यह पदोन्नति भी भारत के जवाबी सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के ठीक बाद हुई, जब भारतीय सेना ने पहलगाम आतंकी हमले के बदले में पाकिस्तान के भीतर मौजूद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया और वहां की रक्षा क्षमताओं की पोल खोल दी। 

इस करारी शिकस्त के बावजूद असीम मुनीर को प्रमोशन दिया गया।  ऐसा केवल पाकिस्तान में ही हो सकता है। इस बोनस ने उन्हें इस स्थिति में ला दिया, जिससे वह तख्तापलट (Coup in Pakistan) को भी संवैधानिक रूप दे सकते हैं।

इसी दौरान एक और बड़ी घटना ने माहौल को और गर्मा दिया। जून में जनरल मुनीर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) से वाशिंगटन डीसी में निजी मुलाकात के लिए पहुंचे, वह भी बिना किसी पाकिस्तानी सिविलियन नेता की मौजूदगी के। यह कोई सामान्य कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं था, बल्कि पाकिस्तान की विदेश नीति में संभावित बदलाव का संकेत था। 

जरदारी की चीन के प्रति झुकाव और CPEC (China–Pakistan Economic Corridor) परियोजना के समर्थन के बीच यह मीटिंग यह जताती है कि मुनीर अब अमेरिका के साथ एक नया रिश्ता गढ़ना चाहते हैं। सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट में कहा गया, 'आसिम मुनीर जरदारी को इसलिए हटाना चाहते हैं क्योंकि वह ताइवान मुद्दे पर चीन के साथ खड़े हैं, जबकि मुनीर ने चुपचाप अमेरिका से हाथ मिला लिया है। उसका लक्ष्य है CPEC को रोकना, चाहे जो भी कीमत चुकानी पड़े।'

इस पृष्ठभूमि में अब यह चर्चा और तेज़ हो गई है कि मुनीर पाकिस्तान में तख्तापलट (Coup in Pakistan) कर राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने की योजना बना रहे हैं, ताकि सत्ता की डोर सीधे उनके हाथ में आ सके। वर्तमान व्यवस्था में प्रधानमंत्री सर्वोच्च कार्यकारी होता है, लेकिन राष्ट्रपति प्रणाली में सारे फैसले का केंद्र राष्ट्रपति होगा और यह पद, कयासों के मुताबिक, खुद मुनीर को सौंपा जा सकता है। 

जरदारी के 'स्वैच्छिक इस्तीफ़े' की बात भी पाकिस्तानी पत्रकारों के हवाले से सामने आई है, जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि उन्हें पद छोड़ने के लिए 'प्रेरित' किया जा रहा है ताकि तख्तापलट (Coup in Pakistan) जैसा दृश्य न दिखे और सत्ता-परिवर्तन को संवैधानिक जामा पहनाया जा सके।

इसी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Shahbaz Sharif) को हटाकर बिलावल भुट्टो जरदारी को आगे लाया जा सकता है। बिलावल की छवि युवा और उदार नेता की है और यह सेना के लिए एक ऐसा 'सिविलियन मुखौटा' हो सकता है, जिसके पीछे वास्तविक नियंत्रण पूरी तरह जनरल मुनीर के पास रहेगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीपुल्स पार्टी खुद भी इस सत्ता संतुलन में भूमिका पाने के लिए तैयार है। अगर राष्ट्रपति प्रणाली नहीं भी आती, तो भी बिलावल को प्रधानमंत्री बनाने की लॉबी तेज हो गई है।

यह संयोग नहीं है कि यह सारी सुगबुगाहट जुलाई के पहले हफ्ते में सामने आ रही है। ठीक इसी समय 1977 में जनरल जिया-उल-हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को गिराकर (Coup in Pakistan) सत्ता पर कब्जा किया था, 'ऑपरेशन फेयर प्ले' के नाम से। पाकिस्तान के इतिहास में यह तीसरा सफल सैन्य तख्तापलट (Coup in Pakistan) था। इससे पहले 1958 में अय्यूब खान और फिर 1999 में परवेज़ मुशर्रफ भी सत्ता को 'संविधान की रक्षा' के नाम पर अपने हाथों में ले चुके हैं।

लेकिन इस बार सेना का तरीका अलग है। यह 'बंदूक और बूट' वाला तख्तापलट (Coup in Pakistan) नहीं, बल्कि संविधान की आड़ में होने वाला एक सॉफ्ट कूप हो सकता है। राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने की चर्चा, विपक्ष को बांटने की रणनीति, अमेरिका से निकटता, और चीन से दूरी - ये सभी ऐसे संकेत हैं जो एक नये पाकिस्तान की तस्वीर पेश करते हैं, जहां लोकतंत्र केवल दिखावे भर रह जाएगा और असल फैसले रावलपिंडी से लिए जाएंगे।

बिलावल भुट्टो के बयान ने आग में डाला घी?

हाल ही में Bilawal Bhutto Zardari ने Al Jazeera को दिए इंटरव्यू में संकेत दिया कि पाकिस्तान भारत के साथ extradition मामलों पर सहयोग करने को तैयार है, जिसमें Hafiz Saeed और Masood Azhar जैसे आतंकी शामिल हैं।

इस बयान के बाद हाफिज सईद के बेटे ताल्हा सईद ने उन्हें गैर-मुस्लिम बताया और उनकी आलोचना की। यह टकराव दर्शाता है कि पाकिस्तान के भीतर कई स्तरों पर सत्ता के समीकरण बदल रहे हैं।

पाकिस्तान में सेना इतनी ताकतवर क्यों है?

सिविल सरकारों की कमजोरी

पाकिस्तान की हर लोकतांत्रिक सरकार पर भ्रष्टाचार, अक्षमता और सुरक्षा नीतियों में विफलता के आरोप लगे हैं। ऐसे में जनता और विदेशी ताकतों को सेना ही एक मजबूत विकल्प लगती रही है।

भारत केंद्रित सुरक्षा नीति

1947 से पाकिस्तान की सैन्य रणनीति भारत-विरोध पर आधारित रही है। इससे सेना को देश के संसाधनों और बजट में सबसे ज़्यादा हिस्सा मिला। Kashmir, LOC, और proxy war ने सेना की भूमिका को एक स्थायी ‘संरक्षक’ की तरह पेश किया।

अमेरिकी और चीनी समर्थन

Cold War के समय से लेकर अब तक अमेरिका और बाद में चीन ने पाकिस्तान की सेना को आर्थिक और तकनीकी मदद दी। इससे सेना को न केवल संसाधन मिले, बल्कि अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क भी मज़बूत हुआ।

राजनीतिक हस्तक्षेप की परंपरा

1958 से लेकर 1999 तक पाकिस्तान में तीन सफल तख्तापलट हो चुके हैं। चाहे Ayub Khan, Zia-ul-Haq हों या Pervez Musharraf—हर बार सेना ने "राष्ट्रीय संकट" का हवाला देकर सत्ता हथिया ली।

Coup in Pakistan : इतिहास क्या कहता है?

1958 : राष्ट्रपति Iskander Mirza ने मार्शल लॉ लगाया, लेकिन जनरल अयूब खान ने उन्हें हटाकर खुद सत्ता संभाली।

1977 : जनरल जिया-उल-हक ने 'ऑपरेशन फेयर प्ले' के तहत जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार गिरा दी। इसके बाद भुट्टो को फांसी दी गई।

1999 : जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ की सरकार को हटाकर बिना खून बहाए तख्तापलट (Coup in Pakistan) कर सत्ता पर कब्जा कर लिया।

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